वेरोनिका जी ने पत्र में लिखा थाः
संपादक जी, यह पत्र बहुत झिझक कर लिख पायी हूँ. अपने पति से मेरा 27 वर्ष का साथ है, जो कि पहले उद्योगपति थे और फ़िर बने राजनेतिक नेता. मैंने हमेशा यह सोचा है कि मेरा स्थान लोगों की दृष्टि से दूर परिवार के भीतर व्यक्तिगत स्तर पर है, इसी से परिवार को सुख शाँती मिल सकते हैं. ... यह पत्र इस लिए लिखना पड़ रहा क्योंकि टेलीगातो पुस्कार समारोह के बाद दिये गये समारोह में मेरे पति ने उस कार्यक्रम में
भाग लेने वाली युवतियों से कुछ इस तरह के बातें कीं जैसे ".. अगर मैं शादी शुदा न होता तो अवश्य तुमसे शादी कर लेता", "..तुम्हारे साथ तो में कहीं भी चलने को तैयार हूँ.." इत्यादि, जो मैं स्वीकार नहीं कर सकती. इस तरह की बातें मेरे आत्मसम्मान के विरुद्ध है और यह बातें मेरे पति की उम्र, पद, सामाजिक स्थान, पारिवारिक स्थिति (पहले विवाह से दो बच्चे और वेरोनिका जी के साथ तीन बच्चे, सभी व्यस्क हैं) देखते हुए भी नहीं स्वीकार की जा सकतीं. मैं अपने पति से और जन नेता से मैं सबके सामने अपनी गलती पर क्षमा माँगने के लिए कहती हूँ. मैंने अपने वैवाहिक जीवन में कुछ भी लड़ने झगड़ने का मौका कभी नहीं आने दिया, कुछ बात हो भी तो चुप रहना ही ठीक समझा... पर उनके इस तरह के व्यवहार पर अगर चुप रहूँगी तो अपना आत्मसम्मान खो बैठूँगी... मुझे अपनी बेटियों को वह उदाहरण देना है कि औरत का आत्मसम्मान महत्वपूर्ण है और अपनी मर्याद को बना कर रखना चाहिये. मुझे अपने बेटों को सिखाना है कि नारी का सम्मान का क्या महत्व है.
आज सुबह अखबारों में श्री सिलवियो बरलुस्कोनी ने सबके सामने पत्नी से क्षमा माँगी और लिखा कि वह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते हैं, उनका बहुत सम्मान करते हैं और उनके हँसी मज़ाक में पत्नी के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाने की कोई इच्छा नहीं थी.
आज बीबीसी पर ये खबर पडी थी .इससे पहले मे सोचता था कि शायद आसा भारत मे ही हो्ता हे . जहीर हे महीलओ को अपने सम्मान कि रक्शा खुद हि करनी होगी .
जवाब देंहटाएंहाँ आजके अखबार में मैने भी पढा इसे.
जवाब देंहटाएंदुनिया में ढिंढोरा पीटने अच्छा घर में ही मामला सुलटा लेना नहीं होता क्या?
चिट्ठे के बढ़े हुए अक्षर तथा टिप्पणी की कड़ी देख प्रसन्नता हुई. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंयह मामला पति-पत्नि का आपसी मामला है, परतुं पति को बगले झांकने के लिए मजबुर करने का यह तरीका भी खुब रहा. अपने केरियर को बचाने के लिए महानुभाव को माफि मांगनी ही थी.
भारत में भी तो उदीत नारायण की पहली पत्नि मिडीया की शरण में आयी थी, और उदीत को उन्हे पहली पत्नि के रूप में स्वीकारना पड़ा था.
घुट घुट जीने के स्थान पर पति को माफि मांगने के लिए मजबुर करना आत्मविश्वस जगाता ही है.
ये अच्छा संदर्भ सुनाया आपने। एक पारिवारिक मसले का लोकतांत्रिक विस्तार... कुछ ऐसा ही मेरी समझ में आया। मैंने अपने देश में कई राजनेताओं को नज़दीक से देखा है। उनके घर की स्त्रियां सार्वजनिक पार्टियों के अलावा कहीं नहीं दिखतीं। वे हमेशा क़ैद रहती हैं। मैंने उन हाल में भी उन्हें देखा है। उनके चेहरे पर एक अजीब सी खामोशी तारी रहती है। जैसे वो सदियों से बोलना भूल गयी हों। लेकिन हमारे यहां कोई स्त्री इतनी हिम्मत नहीं कर पायी कि वो तहमीना दुर्रानी या मिस्टर एक्स प्राइम मिनिस्टर की बीवी की तरह पतियों का कच्चा-चिट्ठा सार्वजनिक कर सके। आपका बहुत शुक्रिया, ये वाक़या हम तक पहुंचाने के लिए।
जवाब देंहटाएंमजेदार किस्सा है यह तो। लेकिन जैसा आपने खुद लिखा और संजय ने कहा ये आपसी बात को अखबार में उछालने की क्या जरूरत! शायद यह दोनों समाजों का अन्तर है! मेरा तो हमेशा से यह मानना है कि अगर आप अपने साथ जुड़े किसी व्यक्ति, साथी को छोटा/ओछा साबित करने पर तुले हैं तो आप पहले अपने आपको छोटा साबित कर रहे हैं। अब उनके बीच क्या हुआ ,कैसे होता रहा यह हम एक अखबार की खबर से नहीं समझ सकते!
जवाब देंहटाएंवेरोनिका जैसी महिलाएं खुद राजनीति में हैं या नहीं ,इटली में? अपने दलों में उनकी क्या स्थिति है ? कभी बताइएगा - गुजारिश है ।
जवाब देंहटाएंरोचक वाकया है। 'घर की बात घर में रहे' वाले संप्रदाय से तो खैर मेरी असहमति है किंतु ये राजनेता मुझे काफी मजेदार लग रहे हैं।
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