कुछ खेल जिनकी प्रतियोगिता इन ओलिम्पिक खेलों में होती हैं उनके नाम हैं एस्कीमो डँडा खींच, मशाल दौड़, मछली काटो, कँबल फ़ेंको, इत्यादि.
बहुत सी प्रतियोगियातिएँ ऊँचा कूदने, तथा कूद कर लात मारने की होती हैं. एक ऊँची कूद में लोगों द्वारा खींच कर पकड़ी हुई तनी हुई रेनडियर की त्वचा पर छलाँग लगाते हैं तो एक दूसरी प्रतियोगिता में 2 मीटर ऊँची रस्सी को कूद कर पैर से छूना होता है.
पर मेरे विचार में सबसे रोचक प्रतियोगिताएँ कानो को पीड़ा देने वाली होती हैं, जैसे कान खींचो और कान से बोझा उठाओ. कान खींचने की प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले एक दूसरे की कान पर रस्सी लपेट देते हैं और आमने सामने बैठ कर रस्सी को खींचते हैं. जो पहले दर्द से घबरा कर सिर पीछे खिंच कर कान से रस्सी को निकाल दे, वह हार जाता है. खेल पहले एक तरफ़ के कान से खेला जाता है फ़िर दूसरी तरफ़ से. कान से बोझा उठाओ खेल में कान से भारी वजन बाँध कर यह देखते हैं कि खिलाड़ी उसे कितनी दूर तक खींचने में समर्थ है. इन कान वालों खेलों में खिलाड़ियों के आसपास बर्फ ले कर उनके साथी खड़े होते हैं जो कि बीच बीच में कानों पर बर्फ लगा कर उनको ठँडक और दर्द से राहत देने की कोशिश करते हैं.
खेलों में एस्कीमो मिस वर्ल्ड भी चुनी जाती है ( नीचे तस्वीर में २००6 की मिस एस्कीमो वर्ल्ड)
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ऐसे खेल और भी देशों में होते हैं जहाँ लोग अपने पाराम्परिक खेलकूद को सुरक्षित रखना चाहते हैं. जैसे कि मँगोलिया में नादाम का उत्सव हर वर्ष अगस्त में मनाते हैं. नादाम में छोटे छोटे चार पाँच साल के बच्चों को घोड़ों पर दौड़ लगाते देखना बहुत रोमाँचकारी लगता है.
अगर भारत में हम इसी तरह अपने पाराम्परिक खेलों की धरोहर को बचाना चाहें तो उनमें कौन से खेल रखेंगे? खो खो, कुश्ती, मुदगर, आँखें बंद करके शब्दभेदी बाण, और क्या क्या?
भारत में 'कान से खींचों' से मिलता-जुलता मैंने कुछ देखा है,बचपन में।अभी भी होता होगा। यह खेल के रूप में तो नहीं लेकिन प्रदर्शन के रूप में होता है। हठयोगी-किस्म के बाबाजी कान जैसे एक नाजुक अंग से बड़े-बड़े पत्थर उठाते हैं।
जवाब देंहटाएंपंजाब में कई देहाती-देशी खेलों की प्रतियोगिता हर साल होती है। शायद बैसाखी के आस-पास ?
बनारस में ब्रह्माघाट पर हर साल आयोजित नंगे हाथ होने वाली मुक्केबाजी(यहाँ उसे 'मुक्की' कहा जाता है) और नागपंचमी पर विभिन्न अखाड़ों में भारी से भारी गदा फेरने की प्रतियोगिता उल्लेखनीय हैं । मलखम्ब और पतंगबाजी भी शामिल करनी होगी।
अगर बात योग की हो रही है तो यह तो कुछ नहीं भारत में कई योगी लिंग द्वारा कई किलो भार उठा लेते हैं।
जवाब देंहटाएंइसके अतिरिक्त थाइलैंड आदि देशों में रहने वाले हिन्दुओं के कुछ त्यौहार के अक्सर चित्र अखबार में देखने को मिलते हैं जिनमें वह अपनी पीठ आदि पर हुक जैसी चीजें गाड़कर लटके होते हैं। जीभ छेदना तो अक्सर देखे जाने वाली घटना है।
कबड्डी तथा गिल्ली-डंडा कैसे भूल गए? :)
जवाब देंहटाएंसुन्दरी की सुन्दर तस्वीर है, आप यहाँ न रकह्ते तो इनके दर्शन ही नहीं होते.
कान प्रतियोगीता के बारे में पढ़ कर कानो में दर्द सा महसुस हो रहा है.
हमारे यहाँ तो नाक के खेल हो सकते हैं । यहाँ नाक का बहुत महात्म्य है । किसी की नाक अधिक लम्बी होती है तो किसी की झट से कट जाती है तो किसी की नाक नीची हो जाती है ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com