बचपन से देखा था कि माँ सुबह स्कूल में पढ़ाने जाने से पहले घर में झाड़ू लगा कर जाती थी, अक्सर झाड़ू के बाद गीला पौंछा भी लगता था। जब मेरी छोटी बहनें बड़ी हुईं तो कभी-कभी वह भी माँ का हाथ बँटाती थीं। जब से इटली में आया तो हमेशा पत्नी को यही काम करते देखा। यह हमारी झाड़ू-पौंछे की पुरानी दुनिया थी।
पहले गर्मियों की छुट्टियों में जब बेटे को ले कर पत्नी महीने-दो महीने के लिए समुद्र तट वाले घर में रहने चली जाती, तो मैं उनसे मिलने जाने के लिए सप्ताह-अंत की प्रतीक्षा करता था। लेकिन उन दिनों में घर की सफाई की ज़िम्मेदारी मेरी होती थी। तब मैं हफ्ते में एक बार झाड़ू लगाता था, और कभी-कभी पौंछा भी लगाता था। साथ में यह ध्यान रखता था कि जिस दिन पत्नी को घर लौटना है, उससे पहले घर की सफाई ठीक से की जाये। लेकिन कई बार ऐसा हुआ कि वह लोग छुट्टियों से एक-दो दिन पहले घर लौट आये और मुझे ठीक से सफाई करने का मौका नहीं मिला। तब पत्नी के माथे पर बल पड़ जाते कि "अरे, घर कितना गंदा हो रहा है"।
करीब दस साल पहले, मैं दो साल के लिए गौहाटी में काम करने गया तो वहाँ किराये के घर में अकेला रहता था। वहाँ घर में एक झाड़ू-पौंछा लगाने वाली आती थी। पिछले तीस-चालीस सालों में मुझे यहाँ पर एकदम साफ-सुथरे में रहने की ऐसी आदत हो गई थी कि मुझे लगता कि गौहाटी की झाड़ू-पौंछा लगाने वाली ठीक से काम नहीं करती थी, जल्दी-जल्दी दो हाथ चलाती और चली जाती। मैं एक-दो बार तो उसे ठीक से सफाई करने को कहा, जब देखा कि उनका काम तो उसे हटा कर एक अन्य महिला को रखा। जब समझ में आया कि काम तो वैसे ही होगा तो उन्हें काम पर आने से मना कर दिया। तब मैं खुद ही सुबह घर में अच्छी तरह से झाड़ू-पौंछा लगा कर ही काम पर जाता था।
नयी दुनिया की नयी सफाई
कुछ साल पहले हमने सफाई करने वाला रोबोट खरीदा। यह घर की धूल, मिट्टी, कूड़ा जमा करने में बढ़िया काम करता है, हालाँकि मेरी पत्नी को उससे संतोष नहीं होता, वह कई बार, इसकी सफाई के बाद, अलग से वेक्यूम क्लीनर ले कर उससे दोबारा सफाई करती है। लेकिन अब जब पत्नी गर्मियों में एक-दो महीने के लिए समुद्र तट पर रहने चली जाती है (और मैं वहाँ नहीं जाता क्योंकि मैं वहाँ तीन-चार दिन में ऊब जाता हूँ), तो घर में मेरे मित्र रोबोट जी ही सफाई करते हैं।
घर के पिछवाड़े में इस रोबोट का बिस्तर लगा है, वहाँ रख दो तो पूरा चार्ज हो जाते हैं। हर दूसरे-तीसरे दिन इन्हें काम पर लगा देता हूँ। गोल-गोल घूम कर यह कमरे के कोने-कोने में जाते हैं। इनके भीतर कम्पयूटर लगा है, इनके पास घर का पूरा नक्शा है कि कहाँ क्या रखा है, सोफे और मेज़ आदि के चक्कर लगाना आता है, और यह सीढ़ियों से नीचे नहीं गिरते। ऊँचाई कम है इसलिए यह अलमारियों, बिस्तरों आदि के नीचे घुस कर सफाई कर सकते हैं। इन्हें चलाने से पहले, मैं कमरे की जो चीज़ें आसानी से हट सकती हैं, उन्हें वहाँ से हटा लेता हूँ ताकि यह खुले घूमें।
छोटे-मोटे कालीन आदि भी झाड़ कर हटा देता हूँ, जबकि मोटे कालीन को वहीं अपनी जगह पर छोड़ देता हूँ ताकि उसके ऊपर से भी अच्छी तरह से सफाई हो जाये।
जब यह काम कर लेता है तो वापस अपने बिस्तर की ओर लौट जाता है और अपने आप को रिचार्ज के लिए लगा लेता है। चूँकि हमारे पिछवाड़े में बारिश के समय पानी जमा हो जाता है, इसलिए हमने इनका बिस्तर ज़मीन से उठा कर चबूतरे पर बनाया है, तो जब रिचार्ज करना हो बेचारा चबूतरे के पास जा कर थोड़ी देर तक तड़पता है, फ़िर वहीं बत्ती बुझा कर बैठा रहता है कि हम इसे उठा कर इसके रिचार्ज-पोर्ट पर रखें।
हमारे मॉडल में केवल वैक्यूम से कूड़ा खींचने वाला झाड़ू है, लेकिन बाज़ार में दूसरे मॉडल मिलते हैं जिनमें पौंछा लगाने की सुविधा भी है। हमने अपना सस्ता सफाई का रोबोट मॉडल, दो-तीन साल पहले, करीब दो सौ यूरो (पंद्रह-सोलह हज़ार रुपये) का खरीदा था। आजकल यहाँ इटली में घर में सफाई का काम करने वाले लोग एक घंटे का करीब दस यूरो (आठ-नौ सौ रुपये) लेते हैं, उस हिसाब इन्हें खरीदना कम खर्चीला है। इसका बटन है, जिसे दबाओ तो कूड़े वाला हिस्सा बाहर निकल आता है और उसे साफ करना आसान है।
जब यह रोबोट जी मेरे आस-पास घुर-घुर करके घूम रहे होते हैं, तो मैं कभी-कभी इनसे बातें भी करता हूँ। कल जब मानव-शरीर जैसे रोबोट बनेंगे तो शायद उनसे पूछूँगा, "भाई साहब, आप चाय पीयेंगे?"
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बेहतरीन 🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए धन्यवाद हरीश जी
हटाएंबहुत खूब । अच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंआलेख पढ़ने और सराहना के लिए धन्यवाद अनूप
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