समुद्र तट पर सैर करते वृद्ध प्रेमियों का जोड़ा
हिन्दी के सप्ताह के नाम, जैसे सोमवार, बुधवार इत्यादि कब और कैसे बने? क्या हमने अंग्रेजी के सन्डे, मन्डे वगैरह को ले कर उनका हिन्दी में उनुवाद कर लिया या फिर ये तो हमारी भाषा में पहले से ही थे ? अगर इन्हें अंग्रेजी से लिया गया है तो हमारी हिन्दी में अग्रेजों के आने से पहले उन दिनों के क्या नाम होते थे ?
आज हवा चल रही है सुबह से सुबह तो समुद्र मे नहाने गया था पर आज दुपेहर को घर से निकलने का मन नहीं कर रहा. सुबह समुद्र के पानी मे पीठ पर लेटा आखेँ बन्द करके तैर रहा था, मन मे गाने के शब्द गूँज रहे थे, "मचलती हुई हवा मे छम छम, हमारे संग संग चलें गंगा की लहरें.." आँख खोली तो देखा तट से काफी दूर आ गया था पाँव नीचे लगाने की कोशिश की तो पाया कि पानी गहरा था और जमीन पर पाँव नहीं लगते थे १ क्षण के लिये तो डर लगा पर फिर बिना किसी दिक्कत के वापस तट के समीप आ गया बाद मे सोच रहा था कि कुछ भी मौका हो, यह हमारे मन मे हिन्दी फिल्मों के गाने ही क्यों आ जाते हैं?
हिन्दी के सप्ताह के नाम, जैसे सोमवार, बुधवार इत्यादि कब और कैसे बने? क्या हमने अंग्रेजी के सन्डे, मन्डे वगैरह को ले कर उनका हिन्दी में उनुवाद कर लिया या फिर ये तो हमारी भाषा में पहले से ही थे ? अगर इन्हें अंग्रेजी से लिया गया है तो हमारी हिन्दी में अग्रेजों के आने से पहले उन दिनों के क्या नाम होते थे ?
आज हवा चल रही है सुबह से सुबह तो समुद्र मे नहाने गया था पर आज दुपेहर को घर से निकलने का मन नहीं कर रहा. सुबह समुद्र के पानी मे पीठ पर लेटा आखेँ बन्द करके तैर रहा था, मन मे गाने के शब्द गूँज रहे थे, "मचलती हुई हवा मे छम छम, हमारे संग संग चलें गंगा की लहरें.." आँख खोली तो देखा तट से काफी दूर आ गया था पाँव नीचे लगाने की कोशिश की तो पाया कि पानी गहरा था और जमीन पर पाँव नहीं लगते थे १ क्षण के लिये तो डर लगा पर फिर बिना किसी दिक्कत के वापस तट के समीप आ गया बाद मे सोच रहा था कि कुछ भी मौका हो, यह हमारे मन मे हिन्दी फिल्मों के गाने ही क्यों आ जाते हैं?
जून के हँस मे मिन्नी दीदी की नयी कविता छपी है, "२" जिसमे लिखा हैः
"तुम अगर सुंदर या आजाद न हुई होतीं
तो हादसा न होता,
क्योंकि वह तो होता ही
रहता है
स्त्री की देह के साथ...
लेकिन पूछो तो सही १ बार,
हमलावर की जबान
पर नाम किसका था."
यह कविता मल्लिका शेरावत की देह से उत्तेजित युवक के बारे मे है और उसी युवक की शिकार १ लड़की के बारे मे यह मान कर भी स्त्रियों पर हमले तो हमेशा होते ही आये हैं और अक्सर उस स्थिति मे लड़की के कपड़ों या व्यवहार को ही दोषी ठहराया जाता है "क्योंकि उनसे वह लड़कियाँ बेचारे भोले लड़कों पर बुरे काम करने पर मजबूर करतीं हैं". यानि कि गलती तो हर हाल मे लड़की या स्त्री की ही होगी. पर मैं यह नही मानता. मेरे ख्याल से मल्लिका शेरावत जैसी लड़कियां ही वह वदलाव लायेंगी जिससे हर लड़की सिर ऊँचा कर के चल पायेगी. लड़कियों पर अकेले मे हमला करने वालों मे कोई दम नहीं होता, डरपोक होते हैं वह और अगर लड़कियाँ हिम्मत से सर ऊँचा कर के चलें और कोई सामने छेड़े तो उसे खुल कर, चिल्ला कर जोर से गाली दे सकें तो शायद उनमे से आधे तो डर से भाग जायें ?
मेरे खयाल से पहले हमारे यहां चौदह दिनों का एक सप्ताह होता था। प्रथमी से लेकर चतुर्दशी तक(चांद के पूर्ण उदय से लेकर पूरे छिपने तक)। ये वार वाला चक्कर नया सा है, पर ये नहीं पता कि कितना पुराना है, कम से कम पुराणों में तो वारों का उल्लेख नहीं है।
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