सोमवार, अगस्त 01, 2005

मारको पाओलीनी के नाटक

रात को "बोलोनिया इस्ताते" (ग्रीष्म ऋतु समारोह) के दौरान मारको पाओलीनी का नाटक देखने गया. पाओलीनी विषेश किस्म के कलाकार हैं. खुद लिखते हैं अपने नाटक, जिनमें वह स्वयं ही गाते, नाचते और बोलते हैं, अकेले. स्टेज पर उनके साथ केवल संगीतकार होते हैं. एक अन्य खासियत है उनकी कि सभी नाटक किसी न किसी आजकल की समस्या के बारे में होते हैं.

कुछ वर्ष पहले उनका एक नाटक इटली में हुई वेइयोन बाँध दुर्घटना पर देखा था तब से उनका प्रशंसक हो गया हूँ. दो घंटे के इस नाटक में उन्होंने सरकारी भर्ष्टाचार और लापरवाही के कच्चे पक्के चिट्ठे खोले थे, पहले बाँध के बनने के बारे में, फिर दुर्घटना की चेतावनियों को न सुनने के बारे में और फ़िर दुर्घटना से प्रभावित परिवारों के बारे में. एक अन्य नाटक था उनका भोपाल की गैस दुर्घटना के बारे में. उनके कई नाटक इतालवी टेलीविज़न के वेबपेज पर देखे जा सकते हैं पर सभी इतालवी भाषा में हैं.
कल रात के उनके नाटक का विषय था पानी और उसे प्राईवेट कम्पनियों को बेचने की कोशिश. नाटक खुली जगह पर हो रहा था, वह भी निशुल्क. इतनी भीड़ की घबराहट हो जाये. अधिकतर जवान लड़के लड़कियाँ थे जिनके बारे में अक्सर कहते हैं कि इन्हें आजकल की समस्याओं से कोइ दिलचस्पी नहीं है और ये केवल समय बिताने और आवारागर्दी की सोचते हैं. पाओलीनी का बात को कहने का अंदाज़ भिन्न है. वह रोना नहीं रोते, कहानियाँ सुनाते हैं. हँसते और हँसाते हैं और जब आप हँस हँस के बेहाल हो रहे हों तब अचानक हठौड़े की तरह कठोर शब्दों से अपनी बात कहते हैं. कल रात भी उनके नाटक में बार बार तालियों की गड़गड़ाहट गूँजती रही. (ऊपर तस्वीर में मारको पाओलीनी, कल रात को)

कल रिजु वापस चला गया. सुबह उसे बोलोनिया की पुरानी बंदरगाह दिखाने ले गया था. उसके बिना घर कुछ सूना सूना सा लगता है. अपने कम्प्यूटर से उसने परिवार की कई तस्वीरे दीं हैं. कुछ तस्वीरे प्रीता भाभी और सृष्टी की भी हैं जिनसे अभी तक नहीं मिल पाया हूँ, पर कम से कम अब उनको तस्वीरों में तो देखा !


बेलापहाड़ में विधु दादा, प्रीता भाभी और सृष्टी

रिजु बोलोनया में हम सब के साथ

2 टिप्‍पणियां:

"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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