पिछली बार मुम्बई गया तो भाभी ने खाने के समय पूछा "तो साथ क्या लोगे पीने के लिए ? वाइन चाहिये ?" "नहीं भाभी, पानी ही ठीक है", मैंने कहा क्योंकि गोलकुंडा वाइन एक बार चखी थी पर खास नहीं भायी थी.
"वहाँ तो सुना है वाइन बड़े डिब्बे में है, तुम्हारी रसोई में! बस उसका नल खोलो और वाइन भर लो गिलास में." भाभी ने ऐसे कहा मानो अब मेरे शराबी हो कर मरने में कुछ अधिक देर नहीं. यह सब खुराफात भतीजी की थी जो यूरोप में छुट्टियाँ मनाने आयी थी और हमारे साथ कुछ दिन रुकी थी. उसी ने यह समाचार भाभी को दिया था कि चाचा की रसोई में वाइन का ढ़ोल रखा है. क्या कहता कि भाभी वह तो सिर्फ इस लिए क्योंकि ढ़ोल में लेने से बहुत सस्ती पड़ती है ?
भाभी को क्या कहता कि लेटिन सभ्यता में वाइन का क्या महत्व है ? बिना वाइन के भी कोई खाना होता है क्या ? यहाँ तो डाक्टर भी कहते हैं कि आधा गिलास वाइन खाने के साथ खाने से दिल की बिमारी कम होती है और लाल वाइन में तो लोहे और अन्य मिनरल पदार्थ हैं जिनसे खून बनता है. यानि कि मजा का मजा और साथ में मुफ्त स्वास्थ्य भी.
मेरी एक मित्र उत्तरी इटली में पहाड़ों में एक स्कूल में पढ़ाती है, कहती है कि कुछ बच्चे सुबह सुबह वाइन में रोटी भिगो कर खाते हैं, फिर कक्षा में आ कर सोये सोये रहते हैं. मैंने पत्नी से पूछा तो उसने भी स्वीकारा कि गँवार परिवारों में अभी भी ऐसा हो सकता है पर अब यह प्रथा बहुत कम हो गयी है, पहले बहुत प्रचलित थी.
यहाँ सब बच्चे चाय पीते हैं. चाय तो प्राकृतिक पदार्थ है, कहते हैं. जब छोटा था तो कभी चाय पीने को नहीं मिलती थी, सब कहते थे कि वह तो बड़ों के पीने की चीज़ है. और चाय पीने से रंग काला पड़ जाता है, यानि जितनी काली चाय, उतना ही रंग काला, इसलिए खूब दूध डालिये उसमें. यहाँ की चाय अपनी भारतीय चाय से बहुत हल्की है, जिसे नींबू के रस के साथ ही पीते हैं, अगर उसमें दूध डालेंगे तो बिल्कुल अच्छी नहीं लगती. यह चाय यहाँ अलग अलग फलों के रसों के साथ कई स्वादों में भी मिलती है और छोटे छोटे बच्चे इसे निप्पल वाली बोतल से भी पीते हैं. यहाँ चाय बच्चों की और वाइन बड़ों के पीने की चीज़ है, छोटे बच्चे अगर बहुत जिद करें तो उन्हें एक चुस्की मिल सकती है.
यहाँ की काफी भी बिल्कुल अलग है. छोटे से बित्ती भर प्याले में जरा सी एसप्रेसो काफी. बार में काफी पीने जायेंगे तो पहले एक छोटे गिलास में पानी देंगे ताकि आप काफी का सही स्वाद लेने के लिए पहले अपने मुख को पानी से साफ करलें. प्याले में काफी इतनी कि बस जीभ भीगती है, पर स्वाद तेज होता है. पहले सोवता था कि इतनी गाढ़ी काफी यानि कि शुद्ध जहर, पर बाद में कही पढ़ा इस काफी में केवल स्वाद ही तेज होता है, केफीन जैसे अन्य पदार्थ आम काफी से कम होते हैं.
जब भी कोई भारत से आता है तो न तो यहाँ की चाय को पसंद करता है और न ही काफी को. और इतालवी लोग जब बाहर जाते हैं तो अपनी काफी को बहुत याद करते हैं. अमरीका में जैसे एक लिटर या आधा लिटर के गिलास में काफी देख कर अपना सिर पीट लेते हैं. मेरी एक इतालवी डाक्टर मित्र पिछले वर्ष हैदराबाद गयी वहाँ के अस्पताल में छह महीने के लिए काम सीखने के लिए. मेरा तभी हैदराबाद जाने का प्रोग्राम बना तो उसके घर टेलीफोन किया, यह पूछने के लिए कि उसे किसी चीज की आवश्यकता हो तो साथ ले जाऊँगा. उन्होंने कहा, "मोका (इतालवी एसप्रेसो बनाने वाली मशीन) के लिए दो तीन किलो काफी ले जाओ, वह बेचारी पानी जैसी काफी पी कर परेशान है".
अनूप जी तारीफ के साथ साथ चिट्ठा विश्व के पन्ने पर मेरे कल के चिट्ठे का उल्लेख भी किया है, धन्यवाद. कल जितेंद्र से "गूगल टाक" के द्वारा भी संपर्क हुआ, बस बात नहीं कर पाया क्योंकि यहाँ बहुत सुबह थी और मुझे डर था कि अगर बातें करने लगूँ तो करीब सोई पत्नी की नींद खराब हो जायेगी.
आज बलोगर होम के पन्ने में कुछ खराबी लग रही है, तस्वीरें अपलोड नहीं हो सकती हैं इसलिए आज कोई तस्वीर नहीं है.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
इस वर्ष के लोकप्रिय आलेख
-
हिन्दू जगत के देवी देवता दुनिया की हर बात की खबर रखते हैं, दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं जो उनकी दृष्टि से छुप सके। मुझे तलाश है उस देवी या द...
-
अगर लोकगीतों की बात करें तो अक्सर लोग सोचते हैं कि हम मनोरंजन तथा संस्कृति की बात कर रहे हैं। लेकिन भारतीय समाज में लोकगीतों का ऐतिहासिक दृष...
-
अँग्रेज़ी की पत्रिका आऊटलुक में बँगलादेशी मूल की लेखिका सुश्री तस्लीमा नसरीन का नया लेख निकला है जिसमें तस्लीमा कुरान में दिये गये स्त्री के...
-
पिछले तीन-चार सौ वर्षों को " लिखाई की दुनिया " कहा जा सकता है, क्योंकि इस समय में मानव इतिहास में पहली बार लिखने-पढ़ने की क्षमता ...
-
पत्नी कल कुछ दिनों के लिए बेटे के पास गई थी और मैं घर पर अकेला था, तभी इस लघु-कथा का प्लॉट दिमाग में आया। ***** सुबह नींद खुली तो बाहर अभी ...
-
सुबह साइकल पर जा रहा था. कुछ देर पहले ही बारिश रुकी थी. आसपास के पत्ते, घास सबकी धुली हुई हरयाली अधिक हरी लग रही थी. अचानक मन में गाना आया ...
-
हमारे घर में एक छोटा सा बाग है, मैं उसे रुमाली बाग कहता हूँ, क्योंकि वो छोटे से रुमाल जैसा है। उसमें एक झूला है, बाहर की सड़क की ओर पीठ किये,...
-
हमारे एक पड़ोसी का परिवार बहुत अनोखा है. यह परिवार है माउरा और उसके पति अंतोनियो का. माउरा के दो बच्चे हैं, जूलिया उसके पहले पति के साथ हुई ...
-
२५ मार्च १९७५ को भी होली का दिन था। उस दिन सुबह पापा (ओमप्रकाश दीपक) को ढाका जाना था, लेकिन रात में उन्हें हार्ट अटैक हुआ था। उन दिनों वह एं...
-
गृत्समद आश्रम के प्रमुख ऋषि विद्यार्थियों को पढ़ा रहे थे, जब उन्हें समाचार मिला कि उनसे मिलने उनके बचपन के मित्र विश्वामित्र आश्रम के ऋषि ग...
सुनील भाई,
जवाब देंहटाएंआजकल पहला पहला आपका ब्लाग ही देखता हूँ, जाने क्या कशिश है, जो मुझे खींच लाती है यहाँ पर, शायद सुन्दर तस्वीरें है या फिर आपका जबरदस्त लेखन, समझ नही पाता हूँ, तस्वीरें ज्यादा खूबसूरत है या आपका लेखन. लेकिन मुझे तो दोनो पसन्द है.
वाइन की बात आपने छेड़ी ही है, मै आपको अपने यूरोप टूर की बात बताउंगा, लम्बी है, इसलिये अपने ब्लाग पर लिखूंगा, आजकल तो हिन्दुस्तान मे भी अच्छी वाइन मिलती है, नागपुर के पास एक कम्पनी है, नाम याद नही है. लेकिन स्वाद अच्छा है.हमारे कुवैत मे दुनिया भर के ब्रान्ड मिलते है, स्वाद वगैरहा सबकुछ वही होता है,बस एक चीज की कमी होती है, कोई अल्कोहल नही होता. यहाँ घरों मे वाइन बनाई जाती है जो बहुत शानदार होती है.
और हाँ, मैने अपने ब्लाग पर कमेन्ट वाली प्रोबलम सुलझा ली है, बिन्दास कमेन्ट्स करिये.
सुनीलजी,आपका लिखना तथा फोटो मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। चिट्ठा विश्व पर मैं दिन की लगभग हर पोस्ट का जिक्र करने का प्रयास करता
जवाब देंहटाएंहूं। कोशिश यह रहती है कि अच्छी पोस्ट का उल्लेख छूट न जाये।हां,आप
देशी पंडित भी देखा करिये ।उसमें भी कुछ हिंदी पोस्ट का जिक्र रहता है। कल वाली तथा इस पोस्ट का जिक्र भी है।