मंगलवार, जनवरी 17, 2006

नये साल के विचार

हर साल ही नये साल आता है तो नये साल में क्या नया करना है या क्या पुराना छोड़ना है, इसका सोवना शुरु हो जाता है. हालाँकि अपने सारे वायदे थोड़े दिनों में ही भूल जाता हूँ फ़िर भी, आदत बदलना आसान नहीं है. इस साल इस सोच में एक अन्य बात का असर भी आ गया था कि बेटे के विवाह से हमारे जीवन का भी नया अध्याय शुरु हो रहा है, यानि उम्र की घड़ी बिना रुके लगातार चलती जा रही है और अपने हिस्से का बचा समय कम होता जा रहा है.

क्या ऐसा करना चाहता था जो नहीं किया या कर पाया ? यह प्रश्न था मेरा स्वयं से. यूँ तो मन में हज़ारों इच्छाएँ होती हैं, पर मेरा ध्येय था उस बात को खोजना जिसकी इच्छा सबसे प्रबल हो, जिसका न कर पाना मुझे सबसे अधिक खलता हो. वह इच्छा है एक उपन्यास लिखना!

कहते हैं कि हम सब के भीतर एक उपन्यास छिपा है. मैंने अपने भीतर छुपे उपन्यास को शुरु करने की चेष्टा पहले भी की थी, पर तब हिंदी में लिख पाने का आत्म विश्वास नहीं था, इसलिए वह पहला ड्राफ्ट अँग्रेज़ी में लिखा गया था. डेढ़ साल पहले लिखा था और अलमारी में बंद कर दिया था, सोचा था कि कुछ समय बीतने के बाद दूसरा ड्राफ्ट लिखूँगा.

इस बीच इस चिट्ठे के माध्यम से हिंदी में लिख पाने का आत्म विश्वास बढ़ा है और जिन लोगों ने उपन्यास का पहला ड्राफ्ट पढ़ा है उनके प्रोत्साहन से भी हौंसला बढ़ा है. तो इस नव वर्ष पर निश्चय कर लिया, इसी काम को आगे बढ़ाना है, इस बार हिंदी में.

इसका अर्थ है कि अब इस चिट्ठे में उतना नियमित रुप से नहीं लिख पाऊँगा जैसे पिछले वर्ष लिख पाता था.

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आज की तस्वीरों में हैं दिल्ली के विषेश हैंडीक्राफ्ट बाज़ार "दिल्ली हाट" के दो कारीगर कलाकार. यह बाज़ार हमारी पाराम्परिक कलाओं को सहारा देता है और बहुत सुंदर है. अगर कभी दिल्ली जाने का मौका मिले तो इस बाज़ार को देखना अवश्य याद रखियेगा.


यह कलाकार हैं मध्यप्रदेश के गौंड चित्रकार वैंकटरमन सिंह श्याम. इनके चित्र मुझे बहुत अच्छे लगेः

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स्वामी जी ने मेरी बड़ी दीदी की समस्या का हल करने के लिये बराहा के प्रयोग करने की सलाह दी है जिससे हिंदी में लिखने की समस्या तो हल हो सकती है पर यूनीकोड की हिंदी पढ़ने की समस्या का हल नहीं मिलता, यानि सभी आधे अक्षर ठीक से नहीं दिखते.

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुनील,
    ब्लाग लिखने का समय तो निकालना ही होगा आपको! :)
    अफ़सोस है मेरा ९८ पर कभी युनीकोड समस्या से पाला नही पडा, इस लिए कोई उपाय खोजने की आवश्यकता नही पडी. मै एक्स.पी. प्रो प्रयोग कर रहा हूं. अब तो यही सूझ रहा है की उन्हें आप एक्स पी होम पे अपग्रेड कर दें.

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  2. उनका ब्राउज़र कौन सा है?
    मैंने पाया है कि 98 पर आई ई 6 होने के बावजूद कभी कभी हिन्दी नहीं दिखती है, इसके लिए माइक्रोसॉफ़्ट की साइट पर जा के नवीनतम आई ई उतारें, कुछ 16 मेगा बाइट का होगा। इसमें यूनिस्क्राइब भी आ जाएगा। फिर आजमाएँ।

    http://www.microsoft.com/windows/ie/downloads/default.mspx

    फिर भी दिक्कत होती है तो बताएँ, मेरे घर के पास एक साइबर्कैफ़े है जिसमें यही समस्या है, वहाँ आजमा के बताऊँगा।

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  3. हिंदी पढ़ने लिखने में अनेक समस्याओं का सामना करने के बाद अब यही कहा जा सकता है कि थोड़ा सा प्रयास कर हिंदी लिखी पढ़ी जा सकती है। इंटरनेट एक्सप्लोरर पर यह ज्यादा आसानी से पढ़ी जा सकती है फिलहाल 31 मार्च 2006 तक फायरफॉक्स ने अधिकारिक रूप से हिंदी को शामिल नहीं किया है।xp & 2000 में रीजनल सैटिंग में जाकर भाषा कीबोर्ड हिंदी भारत indic का चयन करने मात्र से ही हिंदी पढ़ने या लिखने की सुविधा मिल जाती है। 98 में यूनीकोड फॉंट भी डाऊनलोड करने पड़ते हैं तथा किसी न किसी एडीटर द्वारा लिखकर पेस्ट करना पड़ता है ऑनलाईन ऑफलाईन कई हिंदी यूनीकोड सक्षम एडीटर हैं हां यह ध्यान में रखें कि करेक्टर एनकोडिंग utf-8 कर लेवें। यहां फोंट डाऊनलोड करने के लिये एक एक लिंक दिया जा रहा है http://www.parasharas.com/hindifonts raghu akshar पर्याप्त हैं mangal भी उपयोगी है कुछ प्रयास भारत सरकार भी कर रही है उस साईट से भी मदद ले सकते हैं।

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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