गुरुवार, फ़रवरी 22, 2007

मानव अधिकार

अमरीकी गैर सरकारी संस्था "मानव अधिकार वाच" (Human Rights Watch) की 2007 की नयी वार्षिक रिपोर्ट निकली है. इस रिपोर्ट में साल के दौरान विभिन्न देशों में मानव अधिकारों का क्या हुआ, इसकी खबर दी जाती है. कहाँ कौन से अत्याचार हुए रिपोर्ट में यह पढ़ कर झुरझुरी आ जाती है. सूडान के डार्फुर क्षेत्र और इराक में जो हो रहा है उसके बारे में तो फ़िर भी कुछ न कुछ पता चल जाता है पर अन्य बहुत सी जगहों पर क्या हो रहा है, इसकी किसी को खबर नहीं.

तुर्कमेनिस्तान और उत्तरी कोरिया में सख्त तानाशाह गद्दी पर बैठे हैं जहाँ कुछ भी स्वतंत्र कहने सोचने की जगह नहीं है. रूस में गैर सरकारी संस्थाओं पर हमले तो होते रहते हैं, प्रसिद्ध पत्रकार अन्ना पोलिटकोवस्काया जो सरकारी अत्याचारों के बारे में निर्भीक लिखतीं थीं, की हत्या ने सनसनी फ़ैला दी इसलिए भी कि अन्ना छोटी मोटी पत्रकार नहीं थीं, उनका नाम देश विदेश में मशहूर था. लोगों को डराना, धमकाना, उन्हें विभिन्न तरीकों से पीड़ा देना, पुलिस की जबरदस्ती और अत्याचार, कई देशों में निरंकुश बढ़ रहा है.

भारत के बारे में रिपोर्ट कहती है कि "भारत विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है और यहाँ स्वतंत्र प्रेस और सामाजिक संस्थाएँ हैं, फ़िर भी कुछ बाते हैं जिनमें मानव अधिकारों की सुरक्षा नहीं होती. इनमें से सबसे बड़ी समस्या है पुलिस और विभिन्न सुरक्षा संस्थाओं के बड़े अधिकारियों को कुछ सजा नहीं मिल सकती, चाहे वह कुछ भी अत्याचार कर दें. लोगों को पकड़ कर उन्हें पीड़ा देना और सताना, बिना मुकदमे के लोगों को पकड़ कर रखना, उन्हें जान से मार देना आदि, जम्मु कश्मीर, उत्तर पूर्व और नक्सलाईट क्षेत्रों में आम बातें हैं... बच्चों के तथा अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा न कर पाना भी समस्या है, इन अल्पसंख्यकों में धार्मिक अल्पसंखयक, जनजाति के लोग और दलित भी शामिल हैं."

रिपोर्ट ने अमरीका की कड़ी आलोचना है. रिपोर्ट कहती है कि ग्वानतामा बे के कारागार में बिना मुकदमें के कैदियों को कई सालों से रखना और उन्हें यातना देने वाले अमरीका को मानव अधिकारों का रक्षक होने का गर्व त्यागना होगा, उसके अपने दामन पर दाग लगा है. यातना से भागने वाले लोगों को शरण देने से इन्कार करना भी अमरीका की कमजोरी है, और वह दूसरों पर मानव अधिकारों की रक्षा न करने का आरोप लगाता है.

किस देश ने कितना मानव अधिकारों को कुचला इसका अंदाज़ शायद रिपोर्ट में उस देश को कितनी जगह दी गयी है. रिपोर्ट में भारत को 7 पन्ने मिले हैं तो चीन को 12, नेपाल को 6, पाकिस्तान को 7 और अमरीका को 11.

2006 में जिन देशों ने मानव अधिकारों की दिशा में सराहनीय काम किया है उनमें सबसे ऊँचा नाम नोर्वे का है.

अगर आप पूरी रिपोर्ट पढ़ना चाहें तो वह अंतरजाल पर ह्यूमन राईटस वाच पर पढ़ सकते हैं.

5 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो सच है कि भारत में मानवाधिकार की संपूर्ण सुरक्षा कहीं दूर है पर जब भी जम्मू-कश्मीर इत्यादि का नाम आता है तो हमेशा संदेह रहता है कि कहीं सीमाबलों के दैनिक काम को ही ये लोग मानवाधिकार हनन ना बता डांले। भारत में ऐसा होना संभव है यह हम सभी जानते हैं और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट क्षेत्रिय मानवाधिकार संगंठनो से ही संकलित होती होगी।

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  2. भारत के संविधान का अनुच्छेद 22(3)(ख)पुलिस को शांतिकाल में भी यह अधिकार देता है कि वह निवारक निरोध कानून (preventive dentention law) के तहत किसी भी व्यक्ति को कोई अपराध करने से पहले ही, केवल संदेह के आधार पर दो महीने तक हिरासत में रख सके और पुलिस उस व्यक्ति को हिरासत में लिए जाने का आधार बताने के लिए भी बाध्य नहीं है। इस दौरान व्यक्ति न्यायालय में अपने मौलिक अधिकारों के हनन की गुहार भी नहीं कर सकता और किसी वकील की कानूनी मदद भी लेने के अधिकार से उसे वंचित किया जा सकता है।
    पूरी दुनिया में केवल भारत ही एक ऐसा लोकतंत्र है, जिसके संविधान में शांतिकाल के लिए भी ऐसा मानवाधिकार-विरोधी प्रावधान अब भी मौजूद है। पता नहीं, ऐसी क्या मजबूरी है कि अब तक किसी भी सरकार ने भारतीय संविधान में से कलंक के इस धब्बे को हटाने की जरूरत नहीं महसूस की। भारत में इस प्रावधान के दुरुपयोग की अनगिनत शिकायतें मिलती रही हैं, विशेषकर राजनीतिक कारणों से। जबकि सरकार देश की सुरक्षा संबंधी हितों को ध्यान में रखते हुए इस प्रावधान को बरकरार रखने का औचित्य जताती रही है।

    जब तक भारतीय संविधान में यह प्रावधान मौजूद है तब तक देश में मानवाधिकारों को पूरी तरह सुनिश्चित कर पाना संभव नहीं हो सकेगा।

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  3. संजय बेंगाणी22 फ़रवरी 2007 को 2:59 pm बजे

    भारत,कम से कम कैदियों को त्वरित न्याय दे कर व घरेलू हिंसा पर अंकूश लगा कर अपनी स्थिती को सुधार सकता है.

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  4. अनुराग श्रीवास्तव23 फ़रवरी 2007 को 3:38 am बजे

    सुनील,

    इंडीब्लॉगीज़ पर परिणाम देखे, 'उडनतश्तरी' के साथ 'जो ना कह सके' और 'बिहारी बाबू कहिन' भी चुने गये हैं.

    ढ़ेर सारी बधाई!

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  5. मानवाधिकार की बातों को कुछ देर के लिए विराम देते हुए इंडीब्लॉगीज़ पुरस्कार के विजेताओं में शामिल होने पर छोटे भाई की बधाई स्वीकार हो.

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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