शनिवार, सितंबर 06, 2008

वह दोनो

बस स्टाप पर बस आ कर खड़ी हुई तो तुरंत लोग भागम भाग में चढ़े, लेकिन बस ड्राईवर साहब को जल्दी नहीं थी, बस से उत्तर कर बाहर खड़े वह धूँआ उड़ा रहे थे. तब उन दोनो पर नज़र पड़ी. दोनो की उम्र होगी करीब चौदह या पंद्रह साल की. उनके चेहरों में अभी भी बचपन था.

लड़की के बाल ज़रा से लम्बे थे, कानो को कुछ कुछ ढक रहे थे. दोनो ने ऊपर छोटी छोटी बनियान जैसी कमीज़ पहनी थी. और नीचे छोटी निकेर पहनी थी, नाभि से इतनी नीचे कि भीतर के जाँघिये का ऊपरी हिस्सा बाहर दिखे, जैसा कि आजकल का फैशन है. यानि अगर दोल्चे गब्बाना या केल्विन क्लाईन के जाँघिये पहनो तो उन्हें दुनिया को दिखाओ. लड़के की निकेर थोड़ी खुली ढीली सी थी, लड़की की तंग थी.

जहाँ तक अन्य साज सँवार का प्रश्न है, लड़का ही लड़की से आगे था. उसके गले में अण्डे जैसे बड़े बड़े सफेद मोतियों की माला थी, कानों में चमकते हुए बुंदे और कलाई पर किसी चमकती धातु का ब्रेस्लेट. उसके सामने लड़की साधी साधी लग रही थी, उसके गले में न तो माला थी, न कानों में बालियाँ, बस दाँहिनी कलाई पर तीन चार रंगबिरंगी मोतियों वाली ब्रेस्लेट थी. दोनो के चेहरे साफ़ थे, कोई मेकअप नहीं था.

दीवार से सटे दोनो एक दूसरे के मुख, जिव्हा, दाँतों की भीतर से सूक्ष्म जाँच कर रहे थे, या शायद एक दूसरे के टोंसिलों की सफाई. एक दूसरे के गले में बाँहें और चिपके हुए शरीर मानों वहीं सड़क पर ही एक दूसरे में समा जायेंगे.

उन्हें देखा तो अचानक मन में बहुत ईर्ष्या हुई. हमारे ज़माने में इस तरह का क्यों नहीं होता था?

एक तो लड़के यह रंग नहीं पहनते, ऐसा नहीं करते, वैसा नहीं करते, लड़कियाँ यह नहीं करती, वैसा नहीं पहनती के झँझटों से मुक्ती, स्त्री और पुरुष अपनी मन मरजी से पहने जिसमें स्त्री और पुरुष की बाहरी भिन्नता कुछ घुल मिल सी जाये. एक बार दाढ़ी निकल आयेगी तो थोड़ी दिक्कत आ सकती है पर किशोरो को वह दिक्कत भी नहीं.

दूसरे किशोरावस्था में घुसते ही शरीर में जब होरमोन का तूफ़ान छाता है तो दिमाग यौन सम्बंधों के विषय पर ही अटका रहता है. फ़िर अठारह बीस वर्ष की आयु तक शरीर का यौन विकास अपने चरम पर पहुँच जाता है और उसके बाद धीरे धीरे कम होने लगता है. यह दोनो किशोर किशोरी, उसी होरमोन के तूफ़ान में आनंद से बेपरवाह बह रहे थे.

सब बँधनों से मुक्ति और इस मुक्त संसार में पैदा बड़ा हुआ इंसान क्या नयी बेहतर दुनिया बनायेगा? बचपन में ही शुरु हो जाता है कि लड़कों को क्या पहनना चाहिये. अरे कैसे लड़कियों जैसे कपड़े पहने हैं, क्या कभी किसी लड़के को गुलाबी रंग की कमीज़ पहने देखा है, बदलो इसे तुरंत वरना लोग क्या कहेंगे? लड़के खाने में खट्टा नहीं खाते, चोट लग जाये तो वह लड़कियों की तरह नहीं रोते, उन्हें गुड़िया नहीं कारें और फुटबाल अच्छी लगती हैं. लड़कियों के आसपास लगी यह कर सकते हैं, यह नहीं वाली दीवारें शायद और भी ऊँची होती हैं. पर उन दोनों को देख कर लग रहा था कि यह सब बँधन पुराने हो गये, टूट गये हैं और नहीं टूटे तो आने वाली दुनिया इन्हें तोड़ देगी.

यौन सम्बंधों की दीवारें भी हमारे समय में कितनी ऊँची होती थीं. जहाँ तक मुझे याद है उस लड़के की उम्र में मुझे यौन सम्बँधों की पूरी समझ भी नहीं आयी थी, जबकि वह दोनो इस विषय में पीएचडी कर चुके लगते थे. ब्रह्मचर्य, कौमार्य, इज़्जत बचाना, शरीर को बचा कर रखना, इन सब बातों की उन्हें परवाह नहीं लगती.

इस मुक्ति में ही उनका विनाश छुपा है, यौन स्वच्छंदता और शरीर के सुख सब माया हैं, समय के साथ यह भी गुज़र जायेंगे और जीवन के संघर्ष और कठिन हो जायेंगे, मैं खुद को समझाता हूँ. पर क्या सचमुच ऐसा जीवन जीने का मौका मिलता तो क्या मैं न कह पाता? आप को ऐसा जीवन जीने का मौका मिलता तो क्या आप उसे न कह पाते?

9 टिप्‍पणियां:

  1. "इस मुक्ति में ही उनका विनाश छुपा है, यौन स्वच्छंदता और शरीर के सुख सब माया हैं,"
    yahee to geeta mein likhaa hai.
    -premlata

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  2. यह अप्रकृतिक नहीं है अतः कह सकता हूँ, हमें जो सिखाया समझाया गया वह बन्धन नहीं होता तो हम भी वही करते जो ये किशोर कर रहे हैं.


    अब रही बात सही गलत की तो सितार का तार न ज्यादा कसना सही है न उसे ढिला छोड़ देना.

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  3. एक बहुत बढिया पोस्ट !हम सब के वैचारिक अंतर्द्वन्द्व को सामने लाती और जेंडरिंग की प्रक्रिया पर सवाल भी उठाती।वाकई सोचती हूँ कि हमें ऐसा माहौल मिलता तो क्या हम भी उसे चुनना पसन्द करते ?शायद करते । या शायद चुनाव शब्द ही एक भ्रम है?सामान्य सी बात को सहज कह दिया आपने ।

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  4. एक बहुत बढिया पोस्ट !हम सब के वैचारिक अंतर्द्वन्द्व को सामने लाती और जेंडरिंग की प्रक्रिया पर सवाल भी उठाती।वाकई सोचती हूँ कि हमें ऐसा माहौल मिलता तो क्या हम भी उसे चुनना पसन्द करते ?शायद करते । या शायद चुनाव शब्द ही एक भ्रम है?सामान्य सी बात को सहज कह दिया आपने ।

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  5. जरा समझा दीजिए 'मुक्ति में ही विनाश' कैसे छिपा है ?

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  6. मुक्ति में विनाश से मेरा मतलब था कम उम्र में किशोर या अविवाहित माँ बनना, एडस् या अन्य यौन बीमारियों का होना और यौन सुख की तृप्ती से यौन विषय के बारे में उदासीनता या फ़िर उत्तेजना बढ़ाने के लिए हर बार नयी बात खोजना. यह आवश्यक नहीं कि यह सब होगा ही, अगर समाज इस विषय में बात खुल कर करे तो शायद यह सब कम हो सकते हैं, पर कुछ न कुछ खतरा तो बना ही रहेगा.

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  7. अब तो उम्र की उस दहलीज पर हैं जिसमें आपके प्रश्न के जबाब में हाँ कहें तो मरे और न कहें तो मरे. चुपचाप पढ़कर ही ठीक हैं.

    बढ़िया आलेख!

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    -समीर लाल
    -उड़न तश्तरी

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  8. Namaskar Sir, i m B.tech Civil Engineering student. its my first time to read ur blog n ur views about young generation. i know its wrong with u. but it does not mean that ki aap hum logo ko ish tarah badnam karey. agar aap log ish generation me hotey toh kya aap na kartey. lekin mai aap se kafi hud tak sahmat hu kyo ki, watever u saw in bus stop thats are wrong with our indian culture. pls dont mind it.

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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