मेरी दिल्ली जाने की तैयारी शुरु हो गयी है। अगले सप्ताह भारत पहुँच रहा हूँ। तैयारी करते हुए सोच रहा था कि पहले की यात्राओं और अब की यात्राओं में कितना कुछ बदल गया है।
लाने-ले जाने वाली बदलती दुनिया
एक ज़माना था जब भारत जाने से पहले लम्बी लिस्टें बनाता था कि कौन से मसाले, कौन सी दालें, कौन से गानों के कैसेट, कौन सी फिल्मों के वीडियो कैसेट, वगैरा लाना भूलना नहीं है। उन लिस्टों में और भी न जाने क्या क्या होता था। तब सबसे बड़ी चिन्ता होती थी कि सूटकेस का वज़न अधिक हो गया तो सामान एयरपोर्ट पर न छोड़ना पड़े।
फ़िर समय बीता, सन् दो हज़ार के आसपास कैसेट के बदले में सी.डी. या डी.वी.डी. आ गयीं। तभी यहाँ इटली में भी प्रवासी आने लगे तो यहाँ भी एशिआई दुकाने खुलने लगीं। इसलिए पहले दालों और मसालों को लाना कम हुआ फ़िर बिल्कुल समाप्त हो गया। फ़िर हर तरह के फ़ल-सब्जियाँ भी यहाँ मिलने लगे।
जैसे-जैसे समय बीत रहा है, अधिक चीज़े यहाँ मिलने लगी हैं और उनकी क्वालिटी बेहतर हो रही है। एक उदाहरण आमों का। वैसे तो सुपरमार्किट में ब्राज़ीली या अफ्रीकी आम भी मिलते हैं, लेकिन पिछले दस-पंद्रह सालों से पाकिस्तानी आम भी आने लगे थे, जो स्वाद में अच्छे थे लेकिन बहुत मँहगे होते थे, सात-आठ यूरो का एक किलो। इस साल यहाँ स्पेन से एक बहुत बढ़िया आम मिल रहा है, ढाई यूरो का एक किलो। हर साल इस तरह से कुछ न कुछ अन्य चीज़ें बिकने लगी हैं, जैसे कि हल्दीराम के गोलगप्पे के डिब्बे।
हमारे छोटे से शहर में भारतीय दो ही हैं लेकिन यहाँ बँगलादेश और पाकिस्तान के बहुत से प्रवासी हैं, इसलिए यहाँ उनकी दुकाने भी खुली हैं और हर तरह का सामान भी मिलने लगा है। पहले जाने से, दो पहीने पहले से सपने आने लगते थे कि आम खाने हैं, मिठाई खानी है, मेथी, भिंडी और करेले की सब्ज़ी खानी है, इन दुकानों की वजह से अब वह सब बहुत कम हो गया है।
एक ओर लाने वाले सामान में कमी हुई है तो दूसरी ओर भारत ले जाने वाले सामान में बड़ा बदलाव आया है।
सबसे बड़ी दिक्कत है कि घर के लोगों के लिए क्या गिफ्ट ले कर जाओ? वहाँ पर अब सब कुछ मिलने लगा है। पहले चॉकलेट, व्हिस्की जैसी गिफ्ट ले कर जाता था, अब बहुत सोचना पड़ता कि किसके लिए क्या ले कर जाऊँ, अधिकाँश के लिए कुछ नहीं ले कर जाता। कई बार कपड़े ले कर गया हूँ लेकिन अक्सर उन पर भी "मेड इन इंडिया", या बंगलादेश या चीन या वियतनाम का नाम लिखा होता है, इसलिए लगता है कि उन्हें ले कर जाना बेकार है।
वहाँ हिन्दुस्तान की शहर-सड़कें इतनी तेज़ी से बदल रहीं हैं कि मन में थोड़ा सा यह डर भी होता कि वहाँ जाऊँगा तो सब कुछ बदला-बदला दिखेगा। पहले प्लैन बनते थे कि इस दोस्त से मिलना है, वहाँ रिश्तेदार के यहाँ जाना है, वगैरा। वह भी अब बहुत कम हो गया है क्योंकि व्हाटसएप्प और फेसबुक से सबकी खबर मिलती रहती है, कभी कभी वीडियो कॉल से बात भी हो जाती है, तो लगता नहीं कि उनसे बहुत दिनों से नहीं मिले, अब मिलना चाहिये।
लेकिन अभी भी कुछ चीज़ें हैं
इटली में हमारे शहर में अभी दोसा, पूरी-भाजी और छोले-भटूरे जैसी चीज़ें नहीं मिलती, इसलिए सोचता हूँ कि उन्हें खाना है। आयुर्वेदिक दवाएँ खरीद कर लानी हैं। सिनेमा हॉल में जा कर नयी फ़िल्में देखने का आकर्षण भी है। वैसे तो यहाँ सब फ़िल्में देखने को मिल जाती हैं लेकिन हिन्दुस्तान में सिनेमा हॉल में कोई हिट फ़िल्म देखने का मज़ा कुछ और है, बस एक बात अच्छी नहीं लगती कि लोग अक्सर वहाँ भी मोबाइलों पर लगे दिखते हैं।
मुझे संग्रहालय जाने, चिड़ियाघर जाने, बाज़ार में घूमने, संगीत और नृत्य के कार्यक्रम देखने आदि भी बहुत अच्छे लगते हैं, इसलिए इसकी लिस्ट भी बनती है कि कौन सी जगहों पर जाना है। पिछली बार गया था तो इंडिया गेट के पास नये सैनिक स्मारक को और मैहरोली पुरात्तव पार्क को देखने गया था। इस बार के.एम. कला संग्रहालय और दिल्ली आर्ट गैलरी की नयी प्रदर्शनी को देखना है। करीब दो-तीन दशकों के बाद इस बार मैडिकल कॉलेज के कुछ पुराने साथियों से मिलने की योजना भी है। चूँकि घुटनों में दर्द रहता है, लम्बी यात्रा करने का कोई कार्यक्रम नहीं बनाया।
लेकिन हिन्दुस्तान जाने में घरवालों से मिलने की चाह अभी भी सबसे प्रबल होती है, सबके साथ बैठना, बतियाना, गप्प मारना, वहाँ जाने का सबसे बड़ा सुख और आकर्षण यही लगता है। अमरीका से मेरी दूसरी बहन भी वहाँ आयेगी, तब भाई-बहन साथ में बैठ कर खूब गप्प मारेंगे, अतीत की बातों और जो लोग नहीं रहे उन्हें याद करेंगे, कुछ बहसें और लड़ाईयाँ भी होंगी। घर लौटने का सबसे बड़ा सुख यही होगा। नीचे वाली तस्वीर पिछली यात्रा से है।
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