"यह लोग झूठमूठ के रिश्ते बना कर लोगों को ले आते हैं. अपनी बिरादरी या अपने गाँव या अपनी भाषा बोलने वाले को, अपना भाई, अपना चाचा या मामा कह कर मिलवाते हैं. दूसरी तरफ मालिक लोग भी जान पहचान के लोगों को काम पर रखना अधिक पसंद करते हैं. अगर आप किसी को अपना भाई या रिश्तेदार बना कर प्रस्तुत करें और उसे काम मिल जाये, तो आप उस नये काम करने वाले के लिए मालिक के सामने जिम्मेदार बन जाते हैं..." यह इटली में रह रहे सिखों के बारे में किये हुए एक शोधग्रंथ में लिखा है.
उत्तरी पूर्वी इटली में सिख परिवार केवल चार पाँच जगहों पर ही बसे हैं और उन्हें आदर्श इमिगरेंटस् कहा जाता है. उत्तरी इटली में "लेगा नोर्द" नाम की राजनीतिक पार्टी है जो कि विदेश से आये काम करने वालों, विषेशकर मुस्लिम प्रवासियों के खिलाफ बहुत सक्रिय है, पर वह भी कहते हैं कि उन्हें सिख प्रवासियों से कोई शिकायत नहीं.
मैं सोच रहा था उन "झूठे" रिश्तों के बारे में. भारत में भी तो शहरों में गाँवों से काम ढ़ूँढ़ने आते हैं लोग. दिल्ली में बहुत से सम्पन्न घरों में गड़वाल या नेपाल से आये लड़के काम करते थे. वहाँ भी तो ऐसे ही भाईचारे में ही लोग अपनी बिरादरी या गाँव आदि के लोगों को काम पर लगवाने ले आते हैं. क्या हम उन्हें झूठे रिश्ते कहते हैं ?
मेरा विचार है कि भारतीय या शायद एशियाई समाज रिश्तों को भिन्न दृष्टी से देखता है. हमारे यहाँ तो सभी को भाई साहब, बहन जी, अम्मा या अंकल कह कर बुलाते हैं. पर क्या यह केवल बुलाने की बात है या रिश्तों को दूसरी नजर से देखने की बात है ?
आज की तस्वीरों में मेरे दो दोस्ती के रिश्ते - न मानो तो कुछ भी नहीं, मानो तो सब कुछ
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नारायण! नारायण!
जवाब देंहटाएंआयुष्मान भव!
अच्छा लिखते हो, तस्वीरें भी सुन्दर चिपकाते हो। इसलिये नारद मुनि सबसे पहले तुम्हारे ब्लाग पर पधारें।
लेकिन हमे दु:ख है कि तुम कम लिखते हो। प्रत्येक दिन लिखा करो, लोगों को तुम्हारा इन्तज़ार रहता है।