कल २६ जनवरी थी. दो सप्ताह पहले जब दिल्ली में थे तो राजपथ और इंडियागेट के आसपास से गुज़रते समय, गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लेने वाला कोई न कोई दल अपना अभ्यास करता दिख जाता था. कई बार दिल किया वहीं गाड़ी रुकवा कर उन्हें देखने का, पर इतने काम थे और समय इतना कम, कि हर बार यह बात मन में ही रह गयी.
बचपन में कुछ बार परेड देखने राजपथ पर गये थे. एक बार दिल्ली नगर पालिका के स्कूलों के शिक्षकों की परेड थी तो उसमें माँ ने भी भाग लिया था. कुछ और सालों के बाद, छोटी बहन थी स्काऊट के दल में. रिज रोड पर रवींद्र रंगशाला में कैम्प लगता जहाँ विभिन्न प्रदेशों से आये लोक नर्तक दल ठहरते थे, उनके बीच में घूमना, उनकी विभिन्न भाषाओं की बाते सुनना, बहुत अच्छा लगता. फ़िर स्कूल की पढ़ाई पूरी होने पर, स्कूल के सभी साथी क्नाट प्लेस में जमा होते और वहाँ रहने वाले अपने एक साथी के घर से २६ जनवरी की परेड देखते.
उन सब पुराने साथियों से बेटे के विवाह के दौरान परिचय हुआ, तो पुरानी २६ जनवरियों की बातें याद आ गयीं.
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कल सुबह उठा तो बर्फ गिर रही थी. जब बर्फ गिरती है तो आसपास ख़ामोशी सी छा जाती है. हर ध्वनि दबी दबी सी लगती है. दिन भर रुक रुक कर बर्फ गिरती रही थी. रात को कुत्ते के साथ बाग की सैर को गया था तो बर्फ की ख़ामोशी में अँधेरे में घूमते हुए लग रहा था मानो सपना देख रहा हूँ.
आज सुबह बर्फ की चादर और भी घनी हो गयी लगती है. आज काम पर जाने के लिए भी बस लेनी पड़ेगी.
फिर मन में विचार आता है, कल २६ जनवरी थी, क्या मालूम राष्ट्रपति ने अपने संदेश में क्या कहा होगा ? कौन सी झाँकियाँ सुंदर थीं ? कौन सा बैंड सबसे अच्छा था ? बाहर बर्फ को देख कर भी आँखें नहीं देखतीं, ख़ामोशी में २६ जनवरी का सपना देखती हैं.
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आज दो तस्वीरें राजपथ की.
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