रविवार, अक्तूबर 14, 2007

सिले होठों की कड़वी हँसी

मरजान सत्रापी की फिल्म "पेरसेपोलिस" को इस वर्ष के कान फिल्म समारोह में पुरस्कार मिला है. शायद इसीलिए फैरारा शहर में जहाँ लेखक, पत्रकार, फिल्म निर्देशक और फोटोरिपोर्टरों की सभा में इस फिल्म देखने के लिए इतनी भीड़ इक्ट्ठी हो गयी थी कि हाल में नहीं समा रही थी. "पेरसेपोलिस", एक कार्टून फिल्म है जिसमें मरजान ने अपनी आत्मकथा बतायी है और एक छोटी बच्ची की आँखों से ईरान में होने वाले परिवर्तनों को दिखाया है.



मरजान चित्रकथा कलाकार हैं यानि कि कोमिक्स लिखती हैं और बनाती हैं. अपनी कला के बारे में वह कहती हैं, "मैं द्विलैंगिक हूँ, यानि कि निर्णय नहीं ले पाती थी कि मुझे लिखना अधिक अच्छा लगता है या कि चित्र बनाना, अंत में यह सोचा कि मैं दोनो काम साथ साथ करूँ और इस तरह मैं चित्रकथा बनाने वाली बन गयी." बहुत से देशों में चित्रकथाओं को बच्चों के पढ़ने की चीज़ माना जाता हो, पर यूरोपीय कला और लेखन क्षेत्र में उनके काम को बहुत गम्भीरता से लिया जाता है और साहित्य से किसी भी दृष्टी से कम नहीं माना जाता.

मरजान की खूबी है जीवन की कड़वी बातों को हँस के कहना, उनका चुटकुला बना देना. ईरान के उत्तर में केस्पियन सागर के पास रश्त्त के पास पैदा हुई मरजान तेहरान में पली बड़ी हुईं. चौदह साल की मरजान कुछ सालों के लिए ओस्ट्रिया में पढ़ने आयीं जब ईरान में खोमीनी की इस्लामी रिवोल्यूशन हो चुकी थी और मुल्ला राज का प्रारम्भ हुआ था. अपने उस ओस्ट्रिया निवास की भी उनके मन में कड़वी यादें ही हैं, कहती हैं, "तब ईरान देश का नाम ही सब बुरा माना जाता था, जब भी कोई मुझसे पूछता था कि कहाँ से आयी हूँ, तो घँटों मैं यह समझाने की कोशिश करती थी कि कैसा देश है मेरा, कि वैसा नहीं है जैसा दिखाया जाता है." वापस ईरान जा कर उन्होंने तेहरान के कला विद्यालय में पढ़ाई की और फ़िर मुल्ला राज की घुटन से बचने के लिए १९९४ में ईरान छोड़ कर पेरिस में रहने का फैसला किया. उनके पति स्वीडन के हैं.

उनका कोमिक बनाने का तरीका है सीधी सादे श्वेत श्याम चित्र जिनमें ईरान में औरत होने के अनुभवों के कड़वेपन को इस तरह से कहें कि लोग हँस पड़ें. "पेरसेपोलिस" कोमिक को बहुत से देशों में विश्वविद्यलय स्तर पर अध्य्यन का विषय माना गया है और उसी कोमिक पर फ़िल्म बनी है.

मरजान को ईरान में घुसना मना है, वहाँ की सरकार कहती है कि अपने काम से उसने अपने देश से विश्वासघात किया है, अपनी सभ्यता की हँसी उड़ायी है. यह सोचना कि इस तरह का पिछड़ापन केवल ईरान जैसे देश में है गलत होगा. बहुत से देशों में अपनी आलोचना करना गलत माना जाता है, अगर अपने देश में, अपने धर्म में, अपने समाज में कोई गलत बात हो भी तो उसे भीतर ही छुपा कर रखना ही ठीक माना जाता है, इस बारे में बाहर बात करना देशद्रोह बन जाता है. जैसी बातें मरजान ने आज के ईरानी समाज के बारे में की हैं वैसी बातें भारत में करना भी खतरे से खाली नहीं. मुसलमानों या हिंदुओं के बारे में कुछ भी बोलो तो कट्टरपंथी दल आप की जान के पीछे संस्कृति, सभ्यता और धर्म के नाम पर जान से मारने की धमकी दे सकते हैं, तहस नहस कर सकते हैं.


4 टिप्‍पणियां:

  1. कट्टरवाद चाहे धर्म प्रेरित न हो, मसलन नक्सलवाद या खलिस देशभक्ति का जुनून - वह भी वैसा ही है जिसका मरजान सत्रापी के तर्ज पर किया जाने वाला विरोध होना चाहिये।
    जी हां देश भक्ति भी फेनाटिक हाइजैक कर लेते हैं।

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  2. अगर अपने ब्लोग पर " कापी राइट सुरक्षित " लिखेगे तो आप उन ब्लोग लिखने वालो को आगाह करेगे जो केवल शोकिया या अज्ञानता से कापी कर रहें हैं ।

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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