गुरुवार, जनवरी 17, 2008

भारतीय लेखकों की सभा

नये साल को शुरु हुए पंद्रह दिन से भी अधिक हो गये और इस बीच में एक भी चिट्ठा नहीं लिखा. कितनी बार सोचा कि इस बात पर लिखूँगा, उस बात पर लिखूँगा, पर हर बार बात मन में ही रह गयी. यह दिन भागम भाग में ही निकल गये. कुछ तो उम्र बढ़ने के साथ साथ लगता है कि समय कुछ अधिक तेजी से निकलने लगता है, पर इस बार जितनी तेजी से दिन निकले वह कुछ जरुरत से ज्यादा ही हो गया.

खैर बीते दिनों की बात छोड़ कर बात आने वाले दिनों की, की जाये. कल यहाँ इटली के उत्तर में टूरिन शहर में दो दिन की भारतीय लेखकों और लेखन पर एक सभा का आयोजन किया जा रहा है जिसमें मुझे भी निमँत्रित किया गया है. हिंदी के दो लेखकों को बुलाया गया है उदयप्रकाश जी और भगवानदास मरवाल जी. कन्नड़ की लेखिका गायत्री मूर्ती को ही बुलाया गया है.

बाकी के सभी भारतीय लेखक अँग्रेजी में लिखने वाले हैं जैसे कि शशि थरूर, लावण्या शंकर, निरपाल सिँह धालीवाल, अल्ताफ टायरवाला, एम.जे.अकबर, अनीता नायर, तरुण तेजपाल, विकास स्वरूप और सुधीर कक्कड़.

इनमें से कई लेखकों को तो मैं बिल्कुल भी नहीं जानता था, उनका लिखा कुछ नहीं पढ़ा था. इसलिए शुरु शुरु में कुछ अजीब सा लगा कि हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में लोग सारा जीवन लिखते रहते हैं और उन्हें कोई नहीं पूछता और अँग्रेजी में एक किताब लिखने से प्रसिद्धि मिल सकती है.

पिछले दिनों दो नये लेखकों, लावण्या शंकर और अल्ताफ टायरवाला के उपन्यास पढ़े, दोनों ही मुझे बहुत अच्छे लगे. अब दो दिनों तक जाने माने लेखकों के साथ रहने का मौका मिलेगा, उन्हें जानने पहचानने की कुछ उत्सुक्ता भी है मन में और उनकी बात को सुनने का इंतज़ार भी है. तैयारी कर रहा हूँ कि कुछ साक्षात्कार किये जाये, सभा में देने वाले उनके भाषण रिकार्ड किये जायें, आदि.

फ़िर कुछ ही दिनों में, २७ जनवरी को भारत भी जाना है. जाने इस सभा के बारे में कुछ लिखने का कितना समय मिलेगा. अगर अभी नहीं तो फरवरी में भारत से वापस आने पर इस बारे में बात होगी.

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुनील दीपक जी अच्छा है, अगले चिट्ठे में हमे बताईयेगा वहा का घटनाकम।

    विपिन चौधरी

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  2. बहुत दिनो बाद पढ़ने को मिला. अच्छा लगा.

    भारत के अपने कार्यक्रम के बारे में बतायें, कहाँ कहाँ जाना होगा इत्यादी.

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  3. सुधीर कक्कड़ जी बहुआयामी व्यक्ति हैं. उनसे कुछ पकवान बनवाइये गा. उन्हें पकाने खिलाने में आनंद आता है.

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  4. आप की व्‍यस्‍तता के वर्णन सुनने के बाद बहुत हिम्‍मत करके ही पूछ पा रहा हूँ कि 'अपनी' दिल्‍ली तो आएंगे ही न...

    उदयप्रकाश पिछले दिनों एक अनोपचारिक सी चर्चा में मिले थे..उस पर कुछ लोगों ने ब्‍लॉगजगत में लिखा भी...हमने यहॉं लिखा था, विनीत ने यहॉं

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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