मंगलवार, मई 08, 2012

हवा में तैरती हुई हरी नदी


प्राचीन संसार के सात अजूबों में से एक अजूबा था बेबीलोन के झूलते बाग. यह सचमुच के बाग थे या मिथक यह कहना कठिन है क्योंकि इन बागों के बारे में कुछ प्राचीन लेखकों ने लिखा अवश्य है लेकिन इनका कोई पुरात्तव अवशेष नहीं मिल सका है. प्राचीन कहानियों के अनुसार इन बागों को आधुनिक ईराक के बाबिल जिले में ईसा से 600 सौ वर्ष पूर्व बेबीलोन के राजा नबुछडनेज़ार ने अपनी पत्नी के लिए बनवाया था, जिसमें राजभवन में विभिन्न स्तरों पर पत्थरों के ऊपर बाग बनवाये गये थे.

न्यू योर्क में सड़क से ऊँचे स्तर पर बनी पुरानी रेलगाड़ी की लाईन पर बाग बनाने की प्रेरणा शायद बेबीलोन के झूलते बागों से ही मिली थी.

न्यूयोर्क में मेनहेटन के पश्चिमी भाग के इस हिस्से में विभिन्न फैक्टरियाँ और उद्योगिक संस्थान थे, जिनके लिए 1847 में पहली वेस्ट रेलवे की लाईन बनायी गयी थी जो सड़क के स्तर पर थी. रेलगाड़ी से फैक्टरियों तथा उद्योगिक संस्थान अपने उत्पादन सीधा रेल के माध्यम से भेज सकते थे. लेकिन उस रेलवे लाईन की कठिनाई थी कि वह उन हिस्सों से गुज़रती थी जहाँ बहुत से लोग रहते थे, और आये दिन लोग रेल से कुचल कर मारे जाते थे. इतनी दुर्घटनाएँ होती थीं कि इस इलाके का नाम "डेथ एवेन्यू" (Death avenue) यानि "मृत्यू का मार्ग" हो गया था.

Highline park New York - old line

तब इन रेलगाड़ियों के सामने लाल झँडी लिए हुए घुड़सवार गार्ड चलते थे ताकि लोगों को रेल की चेतावानी दे कर सावधान कर सकें, जिन्हें "वेस्टसाईड काओबायज़" के नाम से बुलाते थे. (यह पुरानी तस्वीरें हाईलाईन की वेबसाईट से हैं.)

Highline park New York - cow boys

1929 में शहर की नगरपालिका ने यह निर्णय लिया कि यह रेलवे लाईन बहुत खतरनाक थी और दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सड़क से उठ कर ऊपरी स्तर पर नयी रेल लाईन बनायी जाये. 1934 में यह नयी रेलवे लाईन तैयार हो गयी और इसने 1980 तक काम किया, हालाँकि इसके कुछ हिस्से तो 1960 में बन्द कर दिये गये थे.

फ़िर समय के साथ शहर में बदलाव आये और इस रेलवे लाईन के आसपास बनी फैक्टरियाँ और उद्योगिक संस्थान एक एक करके बन्द हो गये. बजाय रेल के अधिकतर सामान ट्रकों से जाने लगा. शहर का यह हिस्सा भद्दा और गन्दा माना जाता था. वहाँ अपराधी तथा नशे की वस्तुएँ बेचने वाले घूमते थे, इसलिए लोग शहर के इस भाग में रहना भी नहीं चाहते थे.

तब कुछ लोगों ने, जिन्होंने रेलवेलाईन के नीचे की ज़मीन खरीदी थी, नगरपालिका से कहा कि ऊपर बनी रेलवेलाईन को तोड़ दिया जाना चाहिये ताकि वे लोग उस जगह पर नयी ईमारते बना सकें.लेकिन 1999 में वहाँ आसपास रहने वाले लोगों ने न्यायालय में अर्जी दी कि रेलवे लाईन के बचे हुए हिस्से को शहर की साँस्कृतिक और इतिहासिक धरोहर के रूप में संभाल कर रखना चाहिये और तोड़ना नहीं चाहिये. 2003 में एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया कि पुरानी सड़क के स्तर से ऊँची उठी रेलवे लाईन का किस तरह से जनहित के लिए प्रयोग किया जाये. इस प्रतियोगिता में एक विचार यह भी था कि पुरानी रेलवे लाईन पर एक बाग बनाया जाये, जिसका कला और साँस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए प्रयोग किया जाये.

इस तरह से 2006 में हाईलाईन नाम के इस बाग का निर्माण शुरु हुआ. अब तक करीब 1.6 किलोमीटर तक की रेलवे लाईन को बाग में बदला जा चुका है. इसके कई हिस्सों में पुरानी रेल पटरियाँ दिखती हैं, जिनके आसपास पेड़ पौधै और घास लगाये गये हैं, साथ में सैर करने की जगह भी है. दसवीं एवेन्यू के साथ साथ बना यह बाग मेनहेटन के 14वें मार्ग से 30वें मार्ग तक चलता है. अगर आसपास के किसी गगनचुम्बी भवन से इसको देखें तो यह परानी रेलवे लाईन शहर के बीच तैरती हुई हरे रंग की नदी सी लगती है.

Highline park New York - S. Deepak, 2012

इस बाग की वजह से शहर के इस हिस्से की काया बदल गयी है. आसपास के घरों की कीमत बढ़ गयी और पुरानी फैक्टरियों को तोड़ कर उनके बदले में नये भवन बन रहे हैं. बाग दिन भर पर्यटकों से भरा रहता है.

इस बाग की कुछ तस्वीरें प्रस्तुत हैं.

Highline park New York - S. Deepak, 2012

Highline park New York - S. Deepak, 2012

Highline park New York - S. Deepak, 2012

Highline park New York - S. Deepak, 2012

Highline park New York - S. Deepak, 2012

Highline park New York - S. Deepak, 2012

Highline park New York - S. Deepak, 2012

जिस दिन मैं बाग देखने गया, वहाँ "लिलिपुट कला प्रदर्शनी" लगी थी जिसमें विभिन्न कलाकारों ने भाग लिया था. इस कला प्रदर्शनी की कुछ तस्वीरें प्रस्तुत हैं.

Highline park New York - S. Deepak, 2012

Highline park New York - S. Deepak, 2012

Highline park New York - S. Deepak, 2012

कुछ ऐसा ही स्पेन में वालैंसिया शहर में भी हुआ था. वहाँ तुरिया नदी शहर में हो कर गुज़रती थी. 1957 में नदी में बाढ़ आयी और शहर को बहुत नुकसान हुआ, तब यह निर्णय किया कि नदी का रास्ता बदल दिया जाये जिससे नदी शहर के बीच में से न बहे. शहर में जहाँ नदी बहती थी, वहाँ "तुरिया बाग" बनाया गया, जो शहर के स्तर से नीचा है. (नीचे तुरिया बाग की यह तस्वीर विला ज़समीन के वेबपृष्ठ से)

Turiya river park Valencia, Spain

जब नागरिक जागरूक हो कर अपने शहरों की प्राकृतिक, साँस्कृतिक और इतिहासिक सम्पदा को बचाने की ठान लेते हैं, तो उसमें सभी का फायदा है.

काश हमारे भारत में भी ऐसा हो. गँगा, जमुना, नर्मदा जैसी नदिया हों, प्रकृतिक सम्पदा से सुन्दर शिमला या मसूरी के पहाड़ हों या दिल्ली शहर के बीच में प्राचीन पहाड़ी, हर जगह खाने खोदने वाले, उद्योग लगाने वाले, प्राईवेट स्कूल चलाने वाले, मन्दिर, मस्जिद गुरुद्वारे बनवाने वाले, हाऊसिंग कोलोनियाँ बनवाने वालों के हमले जारी हैं, जिनके सामने राजनीति आसानी से बिक जाती है. इनकी रक्षा के लिए हम सब जागें, जनहित के लिए लड़ें, यह मेरी कामना है.

***

23 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन जानकारी ... यहाँ हम भारतीय अपनी सम्पदा को अपने हांथो जमींदोज करने में व्यस्त है

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  2. @नागरिक जागरूक हो कर अपने शहरों की प्राकृतिक, साँस्कृतिक और इतिहासिक सम्पदा को बचाने की ठान लेते हैं, तो उसमें सभी का फायदा है.


    जी सही बात है, पर आपने यहाँ जागरूकता की ही कमी है. राजनीती जात बिरादरी हर जगह हावी हो जाती है,

    विचारणीय पोस्ट के लिए साधुवाद.

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  3. फोटो देख कर और इतनी सारी जानकारी पा कर बहुत अच्छा लगा....

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  4. वाह, एक हरा पुल, नगर के बीचों बीच...

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    1. बिल्कुल हरा पुल, शहर के बीच. धन्यवाद प्रवीण

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  5. NICE POST WITH BEAUTIFUL INFORMATION AND DECENT PHOTOGRAPHS.

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  6. जानकारी भरा एक बहुत ही अच्छा प्रेरनादायी लेख.यदि आम आदमी खड़ा हो कर राष्ट्रीय धरोहर को बचाने का संकल्प कर ले तो किसी भी सरकार को झुकना पड़ता है .हमें अपनी धरोहरों को बचाने के लिए ऐसा ही प्रयास करना चाहिए .

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    1. महेन्द्र जी, धन्यवाद. मैं सोचता हूँ कि अगर हम लोग मिल कर जुटें तो सब कुछ हो सकता है

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  7. प्रेरणास्पद पोस्ट! शायद कुछ लोगों को प्रेरणा मिले। हम तो यहाँ सड़क के किनारे पार्क बनाते हैं जिस में फिर गोबर के उपले थेपे जाते हैं।

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    1. धन्यवाद दिनेश जी. आप की बात सच है, जो सबका होता है, उसे कोई अपना नहीं समझता, उसकी देखरेख नहीं करता, उसके लिए नहीं लड़ता.

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  8. निश्चित रूप से आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है। आप बहुत ही जानकारी से भरे हुए लेख लिखते हैं।

    धन्यवाद

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  9. हमारे यहाँ तो हाउसिंग कॉलोनियाँ ,अपने तत्काल लाभ के लिये, प्राकृतिक संपदा ही को दाँव पर लगाये दे रही हैं -कोई नियम-कानून उनके लिये है भी या नही !

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    1. धन्यवाद प्रतिभा जी. भारत में ही नहीं, सभी जगह यही बात है. अच्छे घर में रहना, हर नागरिक चाहता है और उसका अधिकार भी है. पर साथ ही कैसे मानव और प्रकृति के बीच संतुलन बना सके उसकी बात है. :)

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  10. really nice article. Pictures made it so beautiful . Yes true In India people are not aware and they are doing mistakes. A lot of amount is issued by government for all this work that people come to know the benefit of greenery but that budget also is going into some particular bank account without using for people awareness.

    But still some are doing good work on that place. So hope is there.

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    1. बबीता जी, आप ने सही कहा. जब तक हम सब लोग मिल कर राजनीति और भ्रष्टाचार को बदलने के प्रयत्न नहीं करेंगे, स्थिति बदलना कठिन है.
      धन्यवाद

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  11. रात के तीसरे पहर भटक रहा था, अचानक छपाक की आवाज हुई और शरीर भीग गया...मन भी। टॉर्च मारी तो देखा आपकी हरी नदी में गिर पड़ा हूं। अचानक मिले और क्या खूब मिले। हरी नदी के बारे में पढ़ते मन हरा हो गया, अमेरिकी सभ्यता कितना कुछ सिखाती है जबकि तवारीखी लिहाज से हमसे कितनी छोटी है। जहां तक आपने हिंदुस्तानियों की धरोहरें ना सहेजने की प्रवृत्ति पर सवाल उठाया है तो मैं देखता हूं कि यूरोपियन्स की देखादेखी हम बदल रहे हैं। हां, मुझे यह स्वीकारने में कत्तई संकोच नहीं होता ना इस शब्द का इस्तेमाल करने में...यूरोपियन्स की देखादेखी।
    हम अपने इतिहास के प्रति कभी जागरुक नहीं रहे, हम क्या हैं, हमारा इतिहास क्या है, हड़प्पा-मोहेंजोदड़ो सभ्यता का हमारा इतिहास...ये सारे अन्वेषण किसकी देन हैं। पश्चिम की ही तो। अब भी यदि चेत गए तो कितना कुछ है सहेजने को। शौकिया हिमालयन राइडर-ट्रेकर होने के नाते तकरीबन हर दूसरे महीने हिमालय जाना होता है...देखता हूं कि हर हिमालयन नदी पर, चाहे वो गंगा हो, भगीरथ हो(गंगा बनने से पहले), अलकनंदा हो, या और कोई बड़ी नदी...अंधाधुंध बांध बनाए जा रहे हैं। क्या यही एक तरीका बचा है ऊर्जा-दोहन का। मिर्जा गालिब की हवेली की क्या दुर्दशा है, ये आपने नहीं देखी होगी, मैंने आंखों देखी है और इसपर स्टोरी भी बनाई है कभी...खैर, हजारों हजार मिसालें हैं हमारी कैलसनेस की।
    खैर, आपसे मिलने आता रहूंगा। पोस्ट के लिए धन्यवाद और बधाई भी।
    विश्वास है, कि जो ना कह सके पर वो सबकुछ लिखा जाता रहेगा जो आसानी से कहा ना जा सके, जो कभी खत्म ना हो। भवदीय, विवेक।

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  12. विवेक, आसमान से गिर कर नदी में टपकने के लिए धन्यवाद.:)

    यह बात सही है कि हर देश सभ्यता से कुछ न कुछ सीखने को मिलता है. मैं यह नहीं मानता कि भारत में बिल्कुल जागरूक नहीं रहे हैं, हाँ अधिक जागरूक होने की आवश्यकता है!

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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