रविवार, दिसंबर 18, 2005

बीत गये कितने दिन!

लगता है कि कल की बात है जब वह पैदा होने वाला था. डाक्टर ने तारीख दी थी १० जुलाई की. १० जुलाई आयी और चली गयी, पर उसके आने के लक्षण नहीं दिखाई दे रहे थे. मैं पत्नी के साथ उसके चेकअप के लिए अस्पताल गया. यह वही अस्पताल था जहाँ हमने इक्ट्ठे काम किया था इसलिए वहाँ के सब डाक्टरों और नर्सों को जानते थे.

"कुछ नहीं है, सब ठीक है. पर बच्चा अभी ऊपर है, बच्चेदानी में नीचे नहीं आया. तुम खूब चलो, भागो, सीढ़ियाँ चढ़ो, उतरो", डाक्टर बोले, "उससे बच्चा नीचे आ जायेगा."

इस बात को हम दोनो ने बहुत गम्भीरता से लिया. सारा दिन घूमते. पूर्वी इटली में स्कियो नाम के शहर में रहते थे, जो पहाड़ों के बीच बसा है. वहाँ चढ़ने, उतरने के लिए सीढ़ियों की कमी नहीं थी. पत्नी के फ़ूले हुए पेट को छू कर, उसका हिलना, लात मारना महसूस करना, मुझे बहुत अच्छा लगता. क्या नाम रखेंगे, इस पर लम्बी बहस होती. यह तो पहले से तय था कि बच्चे के दो नाम होंगे, एक इतालवी और एक भारतीय. यह भी तय था कि अगर बेटी होगी तो उसका पहला नाम भारतीय होगा और दूसरा इतालवी, बेटा होगा तो इसका उलटा.

दस दिन बीत गये इसी तरह. फिर अस्पताल चेकअप के लिए गये. "बच्चा अभी भी नीचे नहीं आया, पर सब कुछ ठीक ठाक है", डाक्टर बोले और पत्नी को और चलने, भागने की सलाह दी. आखिर 23 तारीख को शाम को पत्नी को हलका हलका प्रसव दर्द शुरु हुआ तो उसे ले कर अस्पताल वापस पहुँचे. "सब ठीक ठाक है, पर अभी समय लगेगा. कल सुबह से पहले कुछ नहीं होने वाला, आप अभी घर जा कर सोईये, कल सुबह आईये", उन्होंने मुझसे कहा.

अपनी सास के पास ठहरा था, वहाँ आ कर रात को सो गया. रात को अचानक नींद खुली, लगा कहीं टेलीफोन बज रहा था, थोड़ी देर यूँ ही लेटा सुनता रहा, पर जब टेलीफोन रुक कर फिर से बजने लगा तो उठ कर देखने की सोची. पहली मंजिल पर सोया था, टेलीफोन नीचे बज रहा था. नीचे आया तो देखा हमारा ही टेलीफोन था और हमारी साली साहिबा हमें आधे घँटे से टेलीफोन कर कर के परेशान हो गयीं थीं. "जल्दी अस्पताल जाओ, वहाँ से टेलीफोन आया था कि कुछ ठीक नहीं है और अभी ओपरेश्न करना होगा." रात को कार स्टार्ट होने में कुछ परेशानी हो रही थी इसलिए उसे अस्पताल के बाहर ही छोड़ आया था. जब टेलीफोन आया तो भागाभागी में कपड़े पहने और टैक्सी को बुलाया. अस्पताल पहुँचा तो करीब दो बज चुके थे.

पहले पत्नी को देखा, जिसे ओपरेश्न थियेटर से बाहर लाया जा रहा था, बेहोश सी थी पर फिर भी मुझे देख कर रोने लगी. दिल काँप सा गया. "लड़का हुआ है, पर उसकी हालत ठीक नहीं है. बच्चा इंटेन्सिव कैयर में है, नाल उसके गले को घेरे थी, इसलिए वह साँस ठीक से नहीं ले पा रहा था, इसलिए एमरजैंसी में ओपरेश्न करना पड़ा", मुझे बताया गया.

इंटेंसिव कैयर के बाहर शीशे से उसे देखा. इंक्यूबेटर में रखा छोटा सा वह, मुँह पर साँस लेने की नली लगी हुई. उसे वह पहली बार देखना अभी भी ऐसे याद है जैसे कल की बात हो. दो सप्ताह में उसकी शादी होने वाली है. बीत गये कितने दिन, कितनी जल्दी, पता ही नहीं चला.

Deepak family

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17 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चे जाने कब बड़े हो जाते हैं पता ही नही चलता। लगता है अभी कल ही की बात थी, मुझको देखो, परिवार मे सबसे छोटा हूँ, लेकिन छोटी सी उमर मे ही चाचा, दादा,नाना बन चुका हूँ। पिता बनने का सुख पाँच वर्ष पहले मिला, लेकिन आज भी लगता है, कल ही को बात थी।

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  2. सुनील जी,

    आपका ब्लाग उन कुछ बलाग्स में से है जिसे मैं नियमित रूप से पढ़ती हूं। आपके लिखने का तरीका है कि क्या, बहुत ही इन्टरेस्टिंग लगता है हर विषय जिस पर भी आप लिखते हैं। आपको बेटे की शादी तय होने पर ढेरों बधाइयां।

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  3. सही लिखा आपने, बच्चे जब जन्म लेते हैं ,लगता है कल की ही तो बात है. एक एक पल ,उस दिन का ,याद की गहरी लकीर बन ,मन में समा जाता है.

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  4. bete ki shaadi ki dhero shubkamnaye. Shaadi ke photos jaroor post kijiyega.

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  5. माँ बाप के लिये बच्चों की याद से कोमल क्या हो सकता है। बहुत सुन्दर पोस्ट!

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    1. इस पुराने लेख को पढ़ने और टिप्पणी करने के लिए बहुत धन्यवाद, मैं तो भूल ही गया कि इसे लिखा था. :)

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  6. कल 21/सितंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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    1. यश तुम्हारे कारण मुझे भी अपनी पुरानी पोस्ट को पढ़ने का बहाना मिल जाता है और भूली बिसरी बातें याद आ जाती हैं. धन्यवाद :)

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  7. waah kya baat hai gazab.. ye teen baar ki alag alag pictures bahut kuchh kahti hain..bahut hi pyaari post... kuchh alag padhne ko mila..familiar sa khud ko bhi feel hua...

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    1. धन्यवाद स्मिता जी, आप को अच्छा लगा, यह जान कर हमें भी अच्छा लगा :)

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  8. सुनील सर जी, आपको बहुत ज्यादा तो पहले नही पढा, मगर आज मेरा ये सौभाग्य ही था कि अंतर्जाल में विचरण करते करते आपके ब्लाग पर आ कर रुक गयी, और मन की तलाश पूरी हुयी, कुछ अच्छा पढने का मन था।
    आपसे उम्र और अनुभव दोनो में बहुत छोटी हूँ, बस आप बडों के आशीर्वाद की छत्रछाया मिलती रहे...

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    1. अपर्णा, इतनी मीठी प्रशंसा के लिए दिल से धन्यवाद :)

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  9. बधाई स्वीकार करें.....बहुत अच्छा लगा लेख पढ़कर!

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  10. Aksar aapke chitr ko like krti hun .... Aaj yah aalekh padh kar aanaand aa gya sach me...ur in chitro ke saath iss aalekh ki khubsurati aur bhi badh gayi.... Umda lekh ..badhaayi !!!

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    1. लेखिका, तुम तो जानती ही हो, लेखक के लिए प्रशंसा ही आक्सीजन है! बहुत धन्यवाद. :)))

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"जो न कह सके" पर आने के लिए एवं आप की टिप्पणी के लिए धन्यवाद.

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