वह समय था यथार्थवादी चित्रकला शैली (realism) का जिसे पुनर्जन्म युग (renaissance) में द विंची तथा माइकलएँजेलो जैसे चित्रकारों ने उभार दिया था. पुर्नजन्म युग से पहले का मध्यकालीन युग यूरोपीय इतिहास में अँधेरा युग (dark ages) कहा जाता है जब यूरोप में कला और संस्कृति के दृष्टि से रुकाव आ गया था. रोमन और ग्रीक संस्कृति से पनपने, निखरने वाली कला और संस्कृतियाँ कैथोलिक चर्च के रूढ़ीवाद तथा धर्माधिकरण (inquisition) के सामने हार कर अपने भीतर ही बंद हो गयी थी. इसलिए पँद्हवी शताब्दी में जब कला और संस्कृति ने दोबारा खिलने का मौका पाया, उस युग को पुनर्जन्म का नाम दिया गया.
पुर्नजन्म युग से पहले चित्रकला का पहला नियम था सुंदरता दिखाना. पुनर्जन्म युग में यथार्थवादी शैली का प्रारम्भ हुआ जिसमें मानव शरीर को उसकी असुंदरता के साथ दिखाने का साहस किया गया. अब चित्रों के पात्र केवल धनवान, ऊँचे घरों के सुंदर जवान युवक युवतियाँ ही नहीं थे,अन्य लोग जैसे कि बूढ़े, बूढ़ियाँ, बिना दाँत वाले, टेढ़े मेढ़े, गरीब किसान परिवार, इत्यादि सब कुछ जैसे थे वैसा ही दिखाये जा सकते थे. चित्र के पटल पर हर चीज़ स्पष्ट रेखोंओं से बनाई जाती थी, जिससे लगे कि मानो तस्वीर खींची हो जैसे नीचे वाले लियोनार्दो दा विंची (Leonardo da Vinci) के एक रेखा चित्र में देखा जा सकता है.
यही यथार्थवाद अठाहरवीं शताब्दी में दोबारा उभर कर आया था और इसे नवयथार्थवाद का नाम दिया गया था.
मोने ने यथार्थवाद को छोड़ कर प्रभाववाद की नयी तकनीक अपनाई. इस नयी शैली में कलाकार तूलिका से चित्रपटल पर हल्ले हल्के निशान लगाता है, जैसे कि रँगों में हवा मिली हो. तूलिका द्वारा लगी एक एक रेखा, अलग अलग स्पष्ट दिखे. चित्रों का ध्येय कोई यथार्थ दिखाना नहीं बल्कि वातावरण और मनोस्थिति दिखाना है जिसे देख कर आप को एक अनुभूति हो. नीचे की तस्वीर मोने की है जिसमें उनके जन्मस्थान हाव्र की बंदरगाह को दिखाया गया है.
प्रारम्भ में प्रभाववादी चित्रकारों की बहुत हँसी हुई और मोने की चित्रप्रदर्शनियों को सफलता नहीं मिली पर धीरे धीरे इस शैली को स्वीकारा गया और बहुत से चित्रकारों ने अपनाया, जिनमें से विनसेंट वानगाग (Vincent Van Gogh) का नाम प्रमुख है. नीचे वाला चित्र वानगाग का है जिसका शीर्षक है तारों छायी रात (Starry night). इस चित्र के बारे में अधिक समझना चाहें तो ओम थानवी का लेख अवश्य पढ़िये.
आज सुबह धुँध को देख कर मुझे मोने और प्रभाववाद का ध्यान आ गया. धुँध से यथार्थ जीवन की रेखाएँ घुल मिल कर धुँधला जाती हैं और उदासी की मनोस्थिति को व्यक्त करती हैं. इन तस्वीरों को देखिये और बताईये कि प्रभाववाद आप को कैसा लगता है?
धुंध के पार देखने की उत्सुकता जागती है।
जवाब देंहटाएंप्रभाववाद- शायद कला के विकास की यह रीति है!
बहुत उम्दा जानकारी थोड़ा चित्रों को और विस्तार से समझायें तो मर्म थोड़ा ज्यादा खुलेगा…बहुत अच्छा लगा इसबार
जवाब देंहटाएंधूँध रहस्यमय जिज्ञसा पैदा कर रही है.
जवाब देंहटाएंआप कला के भी अच्छे जानकार है!
ओम थानवी का लेख बहुत अच्छा लगा । एकबार कॉलेज के दिनों में एक कोशिश की थी ,वॉन गॉग के एक चित्र की नकल बनाने की । रीडर्स डाईजेस्ट में उनपर एल लेख था , वही देखकर कोशिश करने की हिमाकत की थी ।( मेरा चित्र काफी भोंडा बना , वो रंगों की चटख शोखी कहाँ से आती , वो कूची की बारीकी भी कहाँ मेरे बस की थी, पर तुर्रा ये कि बडे से कैंवस पर ये नकल काफी दिनों तक सँभाल कर रखा था । अब कहीं खो गया .गनीमत है )
जवाब देंहटाएंइस सौन्दर्य के सामने शब्द खो गए हैं । भाग्यवान हैं जो कला व सौन्दर्य से आपका नाता है । तारों वाली रात में कुछ आधिदैविक,अलौकिक है जो सम्मोहित करता है । आखिरी चित्र कुछ ऐसा खींचता है कि इच्छा होती है कि उस राह के अन्त में मैं खड़ी होती । भूरा और ग्रे, मनमोहक रंग हैं ।
जवाब देंहटाएंthe park looks so nice in the mist, so different from the way it was when i saw it.
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